फिशर का ऑपरेशन कैसे होता है (How is Anal Fissure Operated)

भारत वर्ष में आजकल काफी लोग फिशर की समस्या से परेशान है। लोग तरह तरह के घरेलू इलाज करते रहते हैं परन्तु फिशर की समस्या में आराम नहीं मिलती है। फिशर की समस्या अधिकतर युवाओं और बुजुर्गों में देखी जा सकती है। इससे महिलायें भी अछूती नहीं है। बहुत से लोंगो को फिशर की समस्या से निजात पाने के लिये ऑपरेशन कराना पड़ता है लेकिन वह यह नहीं जानते हैं कि फिशर का आपरेशन कैसे होता है और फिशर के ऑपरेशन में कितना खर्च आता है। आइये इस लेख माध्यम से जानते है कि फिशर क्या है और फिशर का ऑपरेशन कैसे होता है (How is Anal Fissure Operated) ।

फिशर क्या है

जब गुदा के आन्तरिक खाल पर यानि कि परत में दरार आ जाती है तो उसको गुदा का फिशर कहा जाता है। गुदा में आने वाली इन दरारों अथवा कट की वजह से मांसपेशियां फैल जाती है’ जिसके कारण उनमें दर्द होने लगता है। समय से इलाज न मिल पाने के कारण ये दरारें घाव में बदल जाती है। मल त्याग करने के कारण इनमें बराबार खिचाव होता रहता है जिस कारण फिशर बिना किसी अच्छी दवा के ये जल्दी से ठीक नहीं  होता है। फिशर की शिकायत ज्यादातर उन लोगों को होती है जिनका पेट ठीक नहीं रहता है इसके अलावा भी इसके होने के कई कारण है।

एनल फिशर के प्रकार

आमतौर पर एनल फिशर के दो प्रकार होते हैं :

एक्यूट एनल फिशर: इस तरह का फिशर एक पेपर कट जैसा दिखता है। इसके कट देखने पर ये महीन और ताजे से दिखायी पड़ते है। इस तरह का फिशर यदि जल्दी हुआ है या 5 से 6 सप्ताह का समय ही हुआ है तो इसे एक्यूट एनल फिशर माना जाता है। ये जल्दी ठीक भी हो जाता है और इसमें मरीज को ज्यादा परेशानी नहीं होती है।

क्रोनिक एनल फिशर: एक्यूट एनल फिशर के आगे की अवस्था को क्रोनिक एनल फिशर कहा जाता है। इसमें गुदा द्वार की आन्तरित परत पर गहरे कट हो जाते है जिसमें से मल त्याग के समय खून आने लगता है। यह फिशर 6 सप्ताह से अधिक समय से पुराना होता है।

फिशर की जांच कैसे होती है

फिशर  की ऑपरेशन करने से पहले डॉक्टर गुदा क्षेत्र की कई प्रकार से जांच करता है और यह सुनिश्चित करता है कि आपको वास्तव में फिशर की समस्या है अथवा नहीं। यदि डॉक्टर को संदेह है तो वह फिशर का ऑपरेशन करने से पहले निम्न प्रकार में से कोई भी एक प्रकार की जाँच करता है।

सिग्मोइडोस्कोपी: फिशर का ऑपरेशन करने से पहले डॉक्टर आपके गुदा नलिका और बड़ी आंत के निचले हिस्से की जाँच करता है जिसमें सिग्मोइडोस्कोप उपकरण का इस्तेमाल करता है। इसे गुदाद्वार के माध्यम से मरीज के अन्दर डाला जाता है। यह एक पतली से ट्यूब होती है जो काफी लचीली और मुलायम होती है। इसके अगले सिरे पर एक कैमरा लगा होता है।    

कोलोनोस्कोपी: यह सिग्मोइडोस्कोपी की तरह ही होती है। इससे मरीज के पूरे कोलन का अध्ययन किया जा सकता है। इसलिये डॉक्टर ऑपरेशन करने से पहले यदि आपके सम्पूर्ण कोलन की जांच करना चाहता है तो वह कोलोनोस्कोपी का टेस्ट कराता है। यह भी एक पतली और लचीली ट्यूब होती जिसके अगले सिरे पर कैमरा और लाईट लगी होती है।

एन्डोस्कोपी : एन्डोस्कोपी के माध्यम से सर्जन मरीज की गुदा, गुदा नलिका और मलाशय के निचले हिस्से की जांच करता है और फिशर की सही स्थित का पता कर सर्जरी करने की आगामी प्रक्रिया शुरू करता है।

बायोप्सी : इसके माध्यम से गुदा के उतक का परीक्षण किया जाता है  और फिर फिशर की सर्जरी के लिये निर्णय लिया जाता है।

इस जांचों के अलावा ऑपरेशन से पूर्व डॉक्टर आपकी ब्लड, ब्लडप्रेशर, शुगर एवं हृदय की जांच भी करता है। मरीज के ब्लड, ब्लडप्रेशर, शुगर एवं हृदय की जांच सामान्य पाने पर डॉक्टर ऑपरेशन की तैयारी करता है।

चलिये दोस्तो अब हम आपको बताते है कि फिशर का ऑपरेशन कितने प्रकार से होता है और सबसे आरामदायक ऑपरेशन कौन सा है

एनल फिशर के आपरेशन के प्रकार

एनल फिशर का ऑपरेशन मुख्यत: दो तरह से होता है –

लेजर ऑपरेशन

आजकल ऑपरेशन की नयी विधि लेजर ऑपरेशन काफी प्रचलित है।  फिशर की सर्जरी में यह अत्यन्त लाभदायक है। इस नवीनतम् पद्धति से ऑपरेशन करने में मरीज को ज्यादा परेशानी नहीं  होती है। इस तरह से ऑपरेशन करने में डॉक्टर को लगभग 15 से 45 मिनट लगते है।  इस सर्जरी में लेजर बीम के माध्यम से क्षतिग्रस्त कोशिकाओं को हटाया जाता है। फिशर का ऑपरेशन लेजर विधि से कराने पर पुरानी से पुरानी फिशर ठीक हो जाती है और एक बार सही होने के बाद दोबार फिशर होने की सम्भावना बहुत कम होती है।

लेजर के द्वारा फिशर का ऑपरेशन कैसे होता है ?

लेजर ऑपरेशन करने से पहले डॉक्टर निम्नांकित स्टेप लेता है-

डॉक्टर मरीज को पीठ के बल लेटाकर उसके घुटनों को मोड़कर उपर कर जांघों को फैलाता है ताकि एनस एरिया को सही ढ़ंग से देख सके और सर्जरी कर सके।

लेजर ऑपरेशन करने से पहले दर्द को अनुभव न हो इसलिये एनल एरिया को सुन्न करने के लिये मरीज को एनेस्थीसिया दिया जाता है।  

एनस एरिया जब सुन्न हो जाता है तो वह लेजर डिवाइस से प्रभावी एरिया पर लेजर बीम के द्वारा सर्जरी करता है।

लेटरल इंटरनल स्फिंक्टरोटॉमी (LIS)

लेटरल इंटरनल स्फिंक्टरोटॉमी एक पुरानी और बहुत ही प्रचलित सर्जरी है। इसे स्फिंक्टरोटॉमी या एनल स्फिंक्टरोटॉमी के नाम से भी जाना जाता है। जिस मरीज को काफी समय से फिशर की परेशानी है उस मरीज की सर्जरी इसी विधि से की जाती है।

लेटरल इंटरनल स्फिंक्टरोटॉमी कैसे की जाती है ?

एनल स्फिंक्टरोटॉमी किसी योग्य सर्जन से किसी अच्छे अस्पताल में करानी चाहिये जहां सर्जरी की अच्छी व्यवस्थायें हों । इस ऑपरेशन को करने से पूर्व डॉक्टर आपके ब्लड की जांच, हृदय की जांच, शुगर की जांच के अलावा अन्य जांचे भी कराता है सभी जांचे सामान्य होने पर वह सर्जरी की प्रक्रिया को शुरू करता है। ऑपरेशन करने से पूर्व ही सर्जन आपको आईवी लाइन लगा देगा जिससे आपकी सर्जरी करते समय दवायें और इन्जेक्शन दिये जा सकें। ऑपरेशन के दौरान आपके शरीर का तापमान और ऑक्सीजन का स्तर, हार्टबीट(हृदयगति) का स्तर और सांस लेने का स्तर मापने के लिये कई तरह की मशीने आपके शरीर पर लगा देगा।

ऑपरेशन शुरू करने से पहले आपको एनेस्थीसिया देगा ताकि आप बेहोश हो जांये और आपको दर्द का अनुभव न हो।

बेहोश हो जाने के उपरान्त डॉक्टर आपकी गुदा नलिका में की त्वचा की मांसपेशी में एक चीरा लगाकर ठीक करेंगे और उस चीरे को सिल देंगे।

डॉक्टर ऑपरेशन किये हुये स्थान को दवा लगाकर पट्टी के माध्यम से ढक देंगे ताकि अधिक खून न निकले।

सर्जरी की इतनी प्रक्रिया करने में लगभग एक घण्टा का समय लग जाता है। सर्जरी करने के उपरान्त आपको ऑपरेशन रूम से सामान्य रूम में शिफ्ट कर दिया जायेगा। होश आने पर आपको धीरे धीरे चलने को कहा जा सकता है।

ऑपरेशन होने के बाद सबकुछ सामान्य रहा तो उसी दिन कुछ घण्टों के बार आपको डॉक्टर डिस्चार्ज कर सकता है या अधिकतक 24 घण्टे तक अपनी देखरेख में रखेगा।

लेजर विधि का चयन क्यों करें?

एनल फिशर की लेजर सर्जरी फिशरेक्टोमी या स्फिंक्टरोटॉमी की तुलना में बेहतर रिजल्ट देती है। यह अन्य सर्जिकल प्रक्रियाओं के मुकाबले कम इनवेसिव, कम दर्द युक्त और पुनरावृत्ति की संभावना को कम करती है। साथ ही फ़ास्ट प्रक्रिया, फ़ास्ट हॉस्पिटल डिस्चार्ज और फ़ास्ट रिकवरी प्रदान करती है।

एनल फिशर का लेजर ऑपरेशन के निम्न फायदे होते हैं:

यह ऑपरेशन बिना किसी कट लगाने से हो जाता है।

इस ऑपरेशन में ब्लड नहीं निकलता है।

इसमें लोकल एनेस्थीसिया का प्रयोग किया जाता है, जिसके कारण एनेस्थीसिया से सम्बन्धी सम्स्या मात्र तीन से चार घण्टे ही रहती हैं।

इस ऑपरेशन में बहुत कम समय लगता है। ऑपरेशन की पूरी प्रक्रिया आधे से एक घण्टे में हो जाती है।

ज्यादातर रोगी को एक दिन में ही अस्पताल से छुट्टी मिल जाती है।

दोबारा से एनल फिशर होने की सम्भावना बहुत ही कम होती है।

कभी – कभी रोगी को ओपन ऑपरेशन कराने के कारण मल को रोक पाने की क्षमता विकृत हो जाती है, जिसके कारण रोगी के कपड़े खराब होने लगते हैं। लेजर ऑपरेशन से मल असंयमन का खतरा खत्म हो जाता है।

रोगी सर्जरी कराने के दो दिन के बाद ही अपने रोजगार सृजन करने के लिये जा सकता ।

इसे भी पढ़ेंबवासीर को ठीक करने की टॉपटेन दवायें

एनल फिशर की सर्जरी के दुष्प्रभाव

रोगी को एनल फिशर का उपचार लेजर सर्जरी के माध्यम से कराना चाहिये। लेजर उपचार के बहुत कम दुष्प्रभाव है।

एनल फिशर का ऑपरेशन के बाद देखभाल

एनल फिशर के ऑपरेशन के बाद कुछ समय या कुछ दिनों तक रोगी के गुदाद्वार या उसके आस–पास के क्षेत्र में दर्द बना रह सकता है, जिसको कम करने के लिये डॉक्टर के द्वारा दर्द निवारक दवायें दी जायेंगी और यदि कब्ज की शिकायत है तो कब्ज को ठीक करने की दवायें और सुपाच्य भोजन करने की सलाह दी जायेगी।

एनल फिशर के ऑपरेशन के बाद कुछ दिनों तक रोगी को मेहनती कार्यों से बचना चाहिये इसके अलावा ज्यादादेर तक ड्राइविंग इत्यादि भी नहीं करनी चाहिये।

सर्जरी के बाद रोगी को पेट में कब्ज नहीं बनने देना चाहिये इसके लिये उसको अपने भोजन में हरी पत्तेदार सब्जियों, फलों और अंकुरित अनाज का सेवन करना चाहिये तथा भरपूर मात्रा में पानी पीना चाहिये।

रिकवरी का समय

प्रत्येक शरीर की संरचना और रोग को ठीक करने की क्षमता अलग– अलग हो सकती है। जिसके कारण सर्जरी के उपरान्त  पूर्ण रूप से रिकवरी करने में अलग– अलग समय लग सकता है। यदि रोगी ने लेजर ऑपरेशन कराया है तो वह लगभग दो से तीन दिन बाद ही अपने रोजगार पर जा सकता है और एक महीने में पूरी तरह से रिकवर हो सकता है और यदि रोगी ने लेटरल इंटरनल स्फिंक्टरोटॉमी करायी है तो उसे कम से कम 15 दिन आराम करना चाहिये उसके बाद ही काम पर जाना चाहिये। लेटरल इंटरनल स्फिंक्टरोटॉमी कराने वाले मरीज आमतौर पर दो माह में पूर्णरूप से रिकवर हो जाते हैं।

इसे भी पढ़ें– बवासीर को बिना ऑपरेशन के ठीक करने की दस सर्वश्रेष्‍ठ दवायें

निष्कर्ष– आज हमने इस लेख के माध्यक से जाना कि फिशर का ऑपरेशन कैसे होता है (How is Anal Fissure Operated) ‚ लेकिन एनल फिशर को ठीक करने के लिये कई तरह की आयुर्वेदिक दवायें बाजार में उपलब्ध हैं जिनसे ये ठीक हो जाता है। ऑपरेशन कराने से पहले रोग को दवायें खानी चाहिये इसके अलावा सिट्ज बाद इत्यादि का भी प्रयोग करना चाहिये। यदि दवाओं इत्यादि से रोगी को कई लाभ नहीं मिलता है तो उसे ऑपरेशन कराने पर विचार करना चाहिये।  

इसे भी पढ़ें–

नींबू से बवासीर का इलाज

महिला बवासीर के लक्षण

कोलगेट से बवासीर का इलाज

बवासीर के मस्सों को सुखाने की दस टॉपटेन दवायें

Leave a Comment