बवासीर का उपचार (Piles Treatment)

बवासीर एक ऐसी बीमारी है जिसे राेगी जल्दी किसी को बताने में शर्म महसूस करता है और अपने आप ही इलाज करता रहता है। बवासीर अर्थात् पाइल्स के सही उपचार के लिये हमारे भारत वर्ष में क्षेत्रवार कई विधियां प्रचलित है। कुछ लोग घरेलू उपचार करके, कुछ लोग वैद्य–हकीम और कुछ लोग सर्जरी कराकर बवासीर का उपचार करते हैं या किसी से कराते हैं। वहीं कुछ लोग एलोपैथिक दवाओं के माध्यम से अपनी बवासीर का उपचार कराते हैं। हर तीसरा व्यक्ति बवासीर के रोगी को कोई न कोई नुस्खा अवश्य बता देता है‚ जबकि उसके पास कोई भी बवासीर के इलाज करने का अनुभव नहीं होता है। ऐसे में रोगी गलत दवा या घरेलू उपायों का प्रयोग करने अपनी बीमारी को बहुत ज्यादा बढ़ा लेता है। इसलिये इस वेबसाईट के माध्यम से आपको बवासीर क्या है और बवासीर का इलाज (Piles treatment) करने के कुछ घरेलू नुस्खे और बवासीर के मस्सों को सुखाकर ठीक करने की अच्छी आयुर्वेदिक दवाओं की जानकारी देने का प्रयास किया गया है।

बवासीर क्या है (What is Piles)

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आज कल भारत वर्ष में बवासीर की बीमारी के रोगी हर घर में मिल जाते है। वैसे तो यह बीमारी किसी भी उम्र के लोगों को हो सकती है लेकिन आजकल का युवावर्ग इससे इस बीमारी से ज्‍यादा प्रभावित है। हमारी दैनिक दिनचर्या‚ खानपान और कार्यक्षेत्र का तनाव हमारे स्‍वास्‍थ्य पर काफी विपरीत असर डालती है। जिसके कारण सबसे पहले शरीर में कब्‍ज होना प्रारम्‍भ् हो जाती है। बवासीर होने का मुख्य कारण कब्‍ज ही है। बवासीर को Piles‚ अर्श‚ मूलव्‍याधि या Hemorrhoids जैसे कई नामों से जाना जाता है। बवासीर एक बहुत तकलीफदेह बीमारी है। कब्‍ज होने की वजह से मल सूख कर कठोर हो जाता है और जब रोगी सुबह–सुबह शौच को जाता है तो वह मल गुदा नलिका (Anal Canal) की सतह से रगड़ खाता है जिसके कारण गुदा नलिका (Anal Canal) के अंदर की नसों की शिराओं में सूजन आ जाती है और सूजन के कारण शिराओं में मस्‍से बन जाते है। बवासीर से पीडि़त व्‍यक्‍ति को सही समय पर पाइल्स का इलाज (Piles Treatment) करा लेना चाहिये यदि ससमय किसी अच्‍छे डाक्‍टर से उपचार नहीं कराया या सही दवा का प्रयोग नहीं किया तो बवासीर की तकलीफ काफी बढ़ जाती है।

यह एक अनुवांशिक समस्या भी है। यदि परिवार में किसी को यह समस्या रही हो, तो कभी–कभी दूसरे व्यक्ति को होने की भी सम्‍भावना रहती है। काफी समय से यदि बवासीर है तो यह ज्‍यादातर मरीजों में यह भगन्दर का रूप धारण कर लेती है जिसे फिस्टुला (Fistula) भी कहते हैं। इसमें असहाय जलन एवं पीड़ा होती है।

बवासीर के प्रकार (Types of Piles)

बवासीर के दो प्रकार होते हैं, जो निम्‍न हैं:

  1. खूनी बवासीर: खूनी बवासीर ( Bleeding Piles) में मरीज को किसी भी तरह का दर्द नहीं होता है। इसमें मरीज जब मलत्‍याग करता है तो मल के साथ ही या बाद में खून आ जाता है। खूनी बवासीर में एनल कैनाल में मस्‍से हो जाते हैं। कब्‍ज होने पर या स्‍टूल हार्ड होने पर वह मस्‍सों से रगड़ कर आता है‚ जिसके कारण एनल कैनाल में मौजूद मस्‍से छ्‍लि जाते हैं और खून आने लगता है।
  2. बादी बवासीर: आजकल की दिनचर्या और खानपान की वजह से ज्‍यादातर लोगों को कब्‍ज‚गैस और अपचन की शिकायत हो जाती है‚ जिसके कारण बादी बवासीर हो जाती है। बादी बवासीर में भी गुदाद्‍वार के अन्‍दर मस्‍से बन जाते हैं जब यह ज्‍यादा बड़े हो जाते हैं तो गुदा द्‍वार के बाहर भी आ जाते हैं। इन मस्‍सों में खुजली और जलन की शिकायत होती है और शौच करते वक्‍त असहनीय दर्द होता है। इन मस्‍सों में खून नहीं आता है।

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बवासीर के ग्रेड (Different Grades of Piles)

बवासीर को मुख्यरूप से चार अलग-अलग ग्रेड में बांटा गया है‚ जो ये है –

ग्रेड – 1 की बवासीर
ग्रेड–1 की पाइल्‍स बहुत ही सामान्‍य होती है इसको बवासीर की शुरूआती अवस्‍था भी कहा जा सकता है। इस बवासीर में मरीज को कोई गम्‍भीर लक्षण दिखायी नहीं देते है। इस अवस्‍था की बवासीर में जो मस्‍से होते है वह काफी छोटे होते हैं। ऐसे समय में रोगी को अपने आप या किसी अन्‍य के बताये हुये घरेलू उपचार न करके तुरन्‍त एक अच्‍छी ऐसी दवा का प्रयोग करना चाहिये जो मस्‍सों को सुखा सके। ज्‍यादातर मामलों में यह देखा गया है कि रोगी किसी के बताये हुये या अपने आप घरेलू उपचार करके बवासीर की समस्‍या को बढ़ा लेता है जो आगे चलकर काफी तकलीफदेह साबित होती है। बाजार में कुछ ऐसी आयुर्वेदिक दवायें उपलब्‍ध हैं जो मस्‍सों को सुखा कर खत्‍म कर देतीं है‚ यदि मस्‍से एक बार सूख कर खत्‍म हो जाते हैं तो बवासीर की समस्‍या ठीक हो जाती है।

इसमें लक्षण कुछ इस तरह दिखायी पड़ सकते हैं-

  • मल त्‍याग के समय खुजली महसूस हो सकती है।
  • मल विर्सजन में असहजता सी महसूल होती है और ऐसा लगाता है कि एलन कैनॉल की नसें सूजी हुयीं हैं।
 

ग्रेड 2 की बवासीर
इसके लक्षण ग्रेड 1 से थोड़े ज्‍यादा होते हैं। इस बवासीर में मल त्‍याग करते समय मस्‍से बाहर आने लगते है और मल विसर्जन के उपरान्‍त अपने आप ही भीतर चले जाते है। इसको दूर करने के लिये भी रोगी को घरेलू नुस्‍खों का प्रयोग कदापि नहीं करना चाहियें। ग्रेड 2 की बवासीर दवाओं से ठीक हो जाती है। इस तरह की बवासीर के मरीज को अच्‍छी आयुर्वेदिक दवा का प्रयोग करना चाहिये जो मस्‍सों को सुखा कर खत्‍म कर सके।

ग्रेड 2 की बवासीर में निम्न प्रकार के लक्षण हो सकते हैं-

  • गुदाद्‍वार के आस–पास खुजली और सूजन होना।
  • बैठने और चलने में हल्का–हल्‍का दर्द होना।
  • मल त्याग के समय दर्द होना या कभी–कभी खून आ जाना।

ग्रेड 3 की बवासीर
इस ग्रेड की बवासीर में मल विसर्जन के दौरान मस्‍से बाहर आ जाते है‚ जोकि बाहर ही बने रहते हैं। शौच के पश्चात् बाहर आये हुये मस्‍सों को उँगलियों से धकेलने पर गुदाद्‍वार के अंदर चले जाते हैं। इस तरह की बवासीर का भी उपचार आयुर्वेदिक दवाओं के द्‍वारा बड़ी आसानी से किया जा सकता है। बाजार में कुछ ऐसी बेहतरीन आयुर्वेदिक दवायें उपलब्‍ध हैं जो मस्‍सों को सुखा देतीं है। इसलिये मरीज को ऐसी दवा का चयन करना चाहिये जो मस्‍सों को सुखाकर सही कर सके।

ग्रेड 3 की बवासीर में निम्न प्रकार के लक्षण दिखाई दे सकते हैं-

  • गुदाद्‍वार से पस⁄म्‍यूकस जैसा निकलता हुआ महसूस किया जा सकता है।
  • मरीज को बैठने और चलने में काफी तेज असहनीय दर्द होना।
  • मलविर्सजन के समय असहनीय दर्द होना और खून आना।

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ग्रेड 4 की बवासीर
इस ग्रेड की बवासीर में मस्से हमेशा बाहर निकले हुये रहते हैं और तेज दर्द करते हैं। ग्रेड 4 की बवासीर भी आयुर्वेदिक उपचार के माध्यम से ठीक की जा सकती है। बाजार में कुछ चुनिन्‍दा दवायें मौजूद है जो मस्‍सों को सुखाने का कार्य करती हैं यदि बवासीर के मस्‍से सूख जाते हैं तो बवासीर ठीक हो जाती है। इसलिये रोगी अच्‍छी और सही दवा लेकर का उसका सेवन करना चाहिये।

ग्रेड 4 की बवासीर के लक्षण-

  • हर वक्‍त गुदाद्‍वार के आस–पास दर्द बना रहता है।
  • मलत्याग करते समय या बाद में बहुत ज्‍यादा खून आना और असहनीय दर्द होना।
  • चलने में और बैठने में बहुत ज्‍यादा दर्द होना।
  • गुदाद्‍वार के बाहर एवं भीतर बड़े–बड़े आकार के मस्सों का होना।

बवासीर होने के लक्षण (Piles or Hemorrhoids Symptoms)

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बवासीर की यदि शुरूआत हुयी हो तो साधारण सा परहेज करने पर यह यह चार से पांच दिनों में अपने आप ठीक हो जाती है परन्‍तु यदि बवासीर की समस्‍या काफी पुरानी हो गयी है और समय से इलाज न कराया गया हो तो मरीजों में निम्‍न प्रकार के लक्षण देखे जा सकते हैं –

  • गुदाद्‍वार के आस-पास कठोर गांठ जैसी महसूस होना और उन गांठो में दर्द होने लगता है कभी–कभी खून भी आ जाता है।
  • शौच के बाद भी पेट अच्‍छी तरह से साफ ना होने जैसा आभास होना।
  • शौच के समय या बाद में लाल चमकदार खून का आना।
  • शौच करते समय अथवा बाद में बहुत ज्‍यादा दर्द होना।
  • गुदाद्‍वार के आस-पास सूजन आ जाना एवं खुजली रहना।
  • मल त्‍याग करते समय म्यूकस का आना।

इन लक्षणों को बिल्कुल भी नजरंदाज ना करें। जल्द से जल्द डॉक्टर के पास जाकर पाइल्स का इलाज कराएं।

बवासीर होने के कारण (Causes of piles)

आयुर्वेद के अुनसार हमारे शरीर में तीन तरह के दोष पाये जाते है। हमारे खान–पान और असंयमित दिनचर्या के कारण ये दोष विकृत हो जाते है। इस लिये आयुर्वेदाचार्य मानते है कि बवासीर वात, पित्त एवं कफ तीनों का बैलेन्‍स खराब अथवा दूषित हो जाने के कारण होता है। जिस रोगी के शरीर में वात या कफ की प्रधानता होती है और वह बवासीर से पीडि़त होते हैं तो उनके मस्‍से शुष्क होते हैं जिस कारण उनको बादी बवासीर की शिकायत हो जाती है। इसी तरह जिनमें पित्‍त की प्रधानता होती उन व्‍यक्‍तियों की बवासीर के मस्‍से आर्द्र होते है‚ जिस कारण उनको मल त्‍याग करते समय या बाद में खून आने लगता है और उन्‍हें खूनी बवासीर की शिकायत हो जाती है। कभी–कभी यह रोग आनुवांशिक भी होता है और पीढ़ी दर पीढ़ी बना रहता है। इसके अलावा भी बवासीर होने के कई कारण है जो निम्‍न है –

कुछ लोगों में यह रोग पीढ़ी दर पीढ़ी देखा जाता है, लेकिन कुछ में अन्य कारणों से भी होता है, जो ये हैंः-

      • बवासीर होने का मुख्य कारण कब्‍ज होता है। कब्‍ज में जब मल सूख कर कठोर हो जाता है तो मल त्‍यागते समय काफी जोर लगाना पड़ता है जिस कारण एनल कैनॉल में मौजूद शिराओं में सूजन आ जाती है और सूजन आ जाने के कारण उनमें मस्‍से बन जाते है।
      • कुछ व्यक्तियों का रोजगार ऐसा होता है जिसकी वजह से उन्‍हें घण्टों खड़ा रहना पड़ता है या एक स्‍थान पर बैठे रहना पड़ता है। ज्‍यादादेर तक एक मुद्रा में बने रहने के कारण भी बवासीर हो जाती है।
      • ज्‍यादा मिर्च–मसालेदार भोजन करने से भी बवासीर की शिकायत हो जाती है।
      • फाइबर युक्त भोजन का सेवन न करना।
      • किसी–किसी महिला को गर्भावस्‍था के दौरान भ्रूण का वजन बढ़ने के कारण भी बवासीर जो जाती है।
      • असंयमित जीवनशैली और शारीरिक श्रम न करने के कारण भी बवासीर की शिकायत हो जाती है।
      • धूम्रपान और शराब का सेवन भी बवासीर होने का एक मुख्य कारण हो सकता है।
      • ज्‍यादा मोटापा होने की वजह से बवासीर हो सकती है।
      • अवसाद

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    बवासीर और भगन्दर में अन्तर (Difference Between Piles and Fistula)

        • काफी लम्बे समय से पेट में कब्ज बना रहता है जिसके कारण शौच में देर तक तक बैठे रहना पड़ता है और मल त्‍यागने में जोर लगाना पड़ता है। जोर लगाने के कारण एनल कैनॉल के निचले भाग की रक्तवाहिनियों में सूजन आ जाती है। सूजन आ जाने के कारण एनल कैनॉल में गुदाद्‍वार के पास मस्‍से बन जाते है‚ जिनके फूटने या कट–फट जाने से खून निकलने लगता है और दर्द की शिकायत होती है। इसके अलावा ज्‍यादा मोटापा होने पर और गर्भवती महिलाओं में भी यह होने का खतरा रहता है।

        • भगन्दर में एनल कैनॉल में गुदाद्‍वार के पास अन्‍दर की ओर फोड़े बन जाते है जिसके फूटने से घाव हो जाते है। शुरूआती समय में इसमें कम खून और मवाद निकलता है। जब भगन्‍दर की शिकायत पुरानी हो जाती और मरीज द्‍वारा सही इलाज न कराने पर लगातार खून और मवाद निकलना शुरू हो जाता है। भगन्‍दर में रोगी को दर्द‚ जलन और खुजली भी बनी रहती है।

      बवासीर का उपचार (Hemorrhoids Treatment)

      बवासीर को ठीक करने के लिये कई प्रकार से उपचार किये जाते हैं‚ जो निम्न हैं– 

      आयुर्वेदिक औषधियों के द्वारा

      बवासीर में एनल कैनॉल के अन्दर की नसों की शिराओं में मस्से बन जाते हैं‚ जिनके कारण ही रोगी को दर्द‚ जलन‚ सूजन और मल के साथ रक्त आने की समस्यायें होने लगती हैंं। हमारे देश में बवासीर के मस्सों को सुखाने के लिये प्राचीन काल से ही आयुर्वेद का प्रयोग होता रहा है। आयुर्वेदिक औषधियों के द्वारा बवासीर के मस्सों को हटाया जा सकता है। आज भी बाजार में मस्सों को सुखाने की बेहतरीन दवायें उपलब्ध हैं। रोगी को ऐसी दवा का चयन करने प्रयोग करना चाहिये जो मस्सों को सुखाने में सक्षम हो। बवासीर के मस्से सूखने बाद बवासीर ठीक हो जाती है और रोगी को ऑपरेशन कराने की आवश्यकता नहीं पड़ती है।  

      एलोपैथिक दवायों के द्वारा

      इनके द्वारा भी बवासीर का इलाज किया जाता है। एलोपैथिक दवायें बवासीर में होने वाले दर्द‚ जलन‚ सूजन और खून आने जैसी समस्याओं में तत्काल राहत तो दे देतीं है लेकिन जैसे ही इनका सेवन करना बन्द किया जाता है तो बवासीर फिर से परेशान करने लगती है। ये दवायें बवासीर के मस्सों को पूर्णरूप सुखा नहीं पाती है जिस कारण बवासीर ठीक नहीं हो पाती है। एलोपैथिक दवाओं का शरीर पर साइड इफेक्ट भी होता है। 

      सर्जरी के द्वारा

      आजकल के सर्जन बवासीर को सर्जरी के माध्यम से ठीक करने की सलाह देते हैं। बवासीर की सर्जरी तीन तरह से की जाती है। 

      1. ओपन सर्जरी
      2. लेजर सर्जरी
      3. क्षार सूत्र विधि
      • ओपन सर्जरी– यह बवासीर के मस्सों को हटाने की पुरानी और परम्परागत सर्जरी है। इसमें ग्रेड–3 और ग्रेड–4 की बवासीर के मस्सों को हटाने की प्रक्रिया की जाती है। इस प्रकार की सर्जरी में रोगी को काफी परेशानी होती है। 
      • लेजर सर्जरी– यह सर्जरी करने की नवीन टेक्नोलॉजी है जो वर्तमान में काफी प्रचलित है। इसमें सर्जन बिना किसी कट के बवासीर के मस्सों को लेजर के माध्यम से हटाता है। इसमें विधि में राेगी को ज्यादा तकलीफ नहीं होती है। 
      • क्षार सूत्र विधि– यह विधि पूर्णतः आयुर्वेदिक है। इसमें आयुर्वेदाचार्य धागे को मस्सों में बांध देते है जिससे वह धीरे –धीरे सूख कर हट जाते हैं और बवासीर ठीक हो जाती है। 

      बवासीर को ठीक करने के लिये बवासीर का ऑपरेशन पूर्णरूप से सफल नहीं है। ज्यादातर रोगियों को बवासीर का ऑपरेशन कराने के कुछ दिनों बाद दोबारा से बवासीर की परेशानियां होने लगती हैं। इसलिये रोगियों को बवासीर का आपरेशन कराने से बचना चाहिये और आयुर्वेदिक दवाओं का सेवन करना चाहिये।

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